ज्योतिर्मठ 26 नवंबर 2025 : राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय जोशीमठ में राष्ट्र गीत वंदे मातरम के 150 साल पूरा होने तथा संविधान दिवस के अवसर पर व्याख्यान माला एवं विमर्श कार्यक्रम आयोजित किया गया। वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने का यह जश्न भारत की राष्ट्रीय पहचान के विकास में इस जीत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को दिखाता है। 19 वीं सदी के आखिर के बौद्धिक और सांस्कृतिक माहौल से निकला ‘वंदे मातरम’उपनिवेशवाद विरोधी प्रतिरोध का शक्तिशाली प्रतीक बन गया। इसमें प्राध्यापकों, छात्र/छात्राओं और शिक्षणेत्तर कर्मियों ने उत्साह के साथ प्रतिभाग किया।
बुधवार को देश भर के स्कूल कॉलेजों में संविधान दिवस के उपलक्ष्य में वंदे मातरम का सामूहिक गायन कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इसी क्रम में राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय जोशीमठ में डॉ रणजीत सिंह मार्तोलिया, असिस्टेंट प्रोफेसर इतिहास द्वारा वंदे मातरम गीत के इतिहास एवं इसके महत्व पर प्रकाश डाला गया ।इस गीत की रचना 1875 में बंकिम चंद्र चटर्जी ने की थी। इसे उन्होंने अपने उपन्यास आनंद मठ(1882) में शामिल किया था। इस गीत को पहली बार 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कोलकाता अधिवेशन में श्री रविंद्र नाथ टैगोर ने गाया था।
महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ प्रीति कुमारी जी ने संविधान दिवस के बारे में जानकारी दी। उन्होंने भारतीय संविधान की ऐतिहासिकता एवं महत्व को रेखांकित किया साथ ही छात्र-छात्राओं को भारतीय संविधान की विशेषताओं एवं महत्ता के बारे में बताया । कार्यक्रम के नोडल अधिकारी श्री नवीन पंत जी, असिस्टेंट प्रोफेसर संस्कृत द्वारा बताया गया कि अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में भूमि की वंदना की गई है जिससे यह गीत अभिप्रेत है।वंदे मातरम गायन एवं संविधान दिवस पर कार्यक्रम में महाविद्यालय के सभी प्राध्यापक, शिक्षणोत्तर कर्मचारी, छात्र संघ के पदाधिकारी, पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष एवं छात्र-छात्राओं द्वारा वंदे मातरम गायन में प्रतिभाग किया गया। कार्यक्रम का संचालन नवीन पंत जी द्वारा किया गया।

